Monday, January 19, 2009

फूलों की चोरी का मौसम

हमारे यहां सामान्यत: एक बरस में चार मौसम की बात स्वीकार की गई है. फिल्मी गीतकारों ने पांचवां मौसम प्यार का बताया है. मुझे लगता है कि हमारे यहां एक और मौसम होता है, वह है फूलों की चोरी का. फूलों का रिश्ता भक्ति और प्रेम से है. फूल प्रतीक हैं, श्रद्धा भक्ति, पे्रम और सौन्दर्य के. गुलाब प्रेमियों का फूल है जिसकी सर्वाधिक बिक्री आजकल वेलेंटाइन डे पर होती है. फूलों को लेकर बहुत सारी कविताएं, शेर-शायरी, किस्से, कहानी हैं. मशहूर शायर बशीर बद्र ने कहा भी है ``गुलाब की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं, मोहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं.'' कवि माखनलाल चतुर्वेदी `एक फूल की अभिलाषा' को कुछ इस तरह बयान करते हैं कि ``चाह नहीं किसी सुरबाला के बालों में गूंथा जाऊं , मुझे तोड़ लेना वनमाली और उस राह में देना फेंक जिस राह पर जाएं वीर अनेक'' सामान्यत: फूल सभी को अच्छे लगते हैं.
खिले हुए फूलों से हरे भरे पेड़-पौधों को देखकर मन हर्षित होता है. कुछ लोगों को अपने बगीचे के फूल अच्छे लगते हैं और कुछ की नजर हमेशा दूसरों के बगीचे में खिले-खिले फूलों पर होती है. सार्वजनिक स्थानों पर खिले फूलों को सर्वाधिक देखभाल की जरूरत होती है. सार्वजनिक बगीजों में खिले फूल अक्सर माली ही तोड़ते हैं. फूलों की वेदना कुछ इस तरह से व्यक्त होती है ``माली आवत देखकर कलियन करे पुकार, खिली-खिली चुन लिए आज हमारी बार.''
सर्वाधिक फूल भगवान को चढ़ते हैं. भक्तगण भगवान को खरीदे गए फूल कम और चोरी के फूल ज्यादा चढ़ाते हैं. ऐसा लगता है कि भगवान खरीदे गए फूलों की अपेक्षा चोरी के फूल ज्यादा स्वीकार करते हैं. भगवान में आस्था रखने वाले भक्तजन मुंह अंधेरे से ही थैला, डंडी लेकर निकल पड़ते हैं. फूलों की चोरी करने और यदि गलती से आप उन्हें अपने घर से बिना अनुमति फूल तोड़ने के लिए टोक, रोक दें, तो वे नाराज हो जाते हैं. सोचते हैं, कैसा अधर्मी है जो भगवान के लिए फूल लेने से मना करता है. फूल पेड़ में नहीं भगवान के श्रीचरणों में अच्छे लगते हैं. भगवान चोरी के फूलों, रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी से चढ़ाए गए चढ़ावे और दिए गए दान तथा किए गये निर्माण के बारे में चूंकि कुछ कहते नहीं हैं इसलिए बहुत सारे भक्तगण इसे भगवान की मौन स्वीकृति मानकर जारी रखते हैं. कुछ लोगों के लिए यह चिंतन का विषय हो सकता है कि आर.टी.ओ. सेलटेक्स आदि के चेकपोस्ट, बड़ी सिंचाई योजना के कार्यस्थल, कमाईवाले सरकारी कार्यालयों के ईदगिर्द या फिर थानों के बाजू में ही भगवान के मंदिर क्यों बनते हैं ? अंतर्यामी अल्लाह, ईश्वर, गॉड क्या अपने भक्तजनों से सपने में आकर बीच सड़क में उनको विराजमान करके यातायात में अवरोध उत्पन्न करने का आदेश देते हैं. सड़क पर बनने वाले धार्मिक स्थल और उनमें विराजे ईश्वर को देखकर कई बार दया आती है, तो कई बार क्रोध. क्या भगवान आपको धूल, गर्मी, शोर पसंद हैं. क्या प्रभु आपको साफ-सुथरे पर्यावरण, शांति का स्थान पसंद नहीं है जो इन बदमाश चेलों के चक्कर में पड़कर आप बीच सड़क में विराजने को तैयार हो जाते हो. प्रभु आप अंतर्यामी हैं, खलकामियों को दंड ेदेने वाले हैं, सर्वज्ञाता हैं, त्रिकालदर्शी हैं फिर आप अपने ऐसे भक्तों को जो चोरी के फूल आप पर चढ़ाकर आपको भी अपने अपराध में शामिल करते हैं, दंडित क्यों नहीं करते. हमारी पुलिस तो चोरी का माल खरीदने, बेचने और रखने वालों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही करती है. क्या भगवान ऐसा नहीं हो सकता कि आप चोरी के फूलों को स्वीकारना ही बंद कर दें. आपके तमाम मंदिरों में इस आशय की सूचना अंकित कर दी जाए कि चोरी के फूल, चोरी का पैसा, नंबर दो की कमाई, गरीबों को सताकर प्राप्त किया गया धन मेरे मंदिर में स्वीकार नहीं होगा. बिना शोरगुल, लाउडस्पीकर के मेरी पूजा अर्चना होगी. कोई पाखंड ढोंग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मेरे नाम पर किसी तरह की राजनीति, लड़ाई, दुकानदारी नहीं चलेगी. मेरे मंदिर में बिना भेदभाव के सभी को प्रवेश की अनुमति होगी.
यदि ईश्वर प्रदत्त इस प्रकृति से पेड़-पौधे और विविध फूलों को हटा दिया जाए तो समूची प्रकृति बदरंग हो जाएगी. किसी भी जगह पर खिले फूल को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है. आंखे बरबस फूलों की ओर आकर्षित होती हैं. फूलों के रंग मनुष्य में रसों का संचार करते हैं. कुछ कैक्टस भी फूलों वाले होते हैं, जो देखने में अच्छे लगते हैं. फूलों की खुशबू से मन महक जाता है. विविध तरह के पक्षी फूलों से आकर्षित होकर आते हैं. तालाब में खिला हुआ कमल तालाब की संुदरता में चार चांद लगा देता है. चंपा, चमेली, मोंगरा, की महक नीरस से नीरस आदमी को मदहोश कर देती है.
फूलों से आशिकी का हुनर सीख लें,
तितलियां खुद रूकेंगी सदाएं न दें.
वैसे भी हमारे शहरों में ढंग के बगीचे नहीं हैं, जो थोड़े-बहुत बगीचे हैं वे भी ओव्हर काउडेड हैं. बाजार में बदलते शहर के कारण अब घरों के सामने पेड़-पौधे, बगीचे नहीं लगाए जाते. शटर लगाकर दुकान बनाई जाती है. कुछ ही घर हैं जहां खिले हुए फूल, हरे-भरे पौधे दिखाई पड़ जाते हैं. तालाबों में कमल की जगह जलकंुभी भरी पड़ी है, नदी-नाले प्लास्टिक और शहरी गंदगी से पटे पड़े हैं. ऐसे समय में एक अच्छे नागरिक के नाते हमारी जवाबदारी है कि हम अपने पर्यावरण को बेहतर बनाएं. जहां कहीं भी खिले हुए फूल हैं उन्हें पेड़-पौधों पर लगे रहने दें.
घर में खिला हुआ एक फूल भी घर की रौनक में चार चांद लगा देता है. सड़क के किनारे और बीच में लगे पौधे और उसमें खिले फूल को देखकर किसी शहर के सौंदर्य का वहां के लोगों की रूचि का पता चलता है. दूसरे के घरों में खिले फूल तोड़ने को अपना अधिकार समझने वालों को अपने घर में पौधे लगाकर फूलों को खिलते हुए देखना चाहिए. फूल तोड़न के लिए सुबह-सुबह तरह-तरह के उपक्रम करने वालों में कई चेहरे तो ऐसे होते हैं जो आसानी से फूल खदीद सकते हैं. जो सार्वजनिक जीवन में चोरी चकारी के खिलाफ हैं किन्तु सुबह-सुबह दूसरों के घरों से फूल तोड़ते हुए उन्हें यह अनुभूति कतई नहीं होती कि वे कोई अपराध कर रहे हैं. वे तो फूल चारी को धार्मिक कृत्य समझते हैं. मेहनत से तैयार की गई क्यारी, फूलवारी में खिले फूल को देखकर जो अनुभूति होती है वह अपने आपमें अविस्मरणीय है. कुछ लोग बिना श्रम के दूसरों के लगाए पेड़ से फल खाने की चाह रखते हैं. बकौल शायर बशीर बद्र -
``जहां पेड़ पर चार दाने लगे, हजारों तरफ से निशाने लगे.''

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