Monday, January 19, 2009

छत्तीसगढ़ की कला का सम्मान

वैसे तो भारते के भौगोलिक नक्शों पर एक नवंबर २००० को देश के २६वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई. किन्तु जो छत्तीसगढ़ यहां की कला संस्कृति, गीत-संगीत में बरसों से लोगों के दिल में बसा हुआ है और हबीब तनवीर, तीजनबाई, झाडूराम देवांगन, विनोद कुमार शुक्ल की रचनाआें के माध्यम से जिसकी पहचान देश-विदेश में हो चुकी है उस छत्तीसगढ़ ने बहुत पहले ही लोगों के दिलों में जगह बना रखी थी.
छत्तीसगढ़ को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले हबीब तनवीर को हाल ही में लिजेंड ऑफ इंडिया सोसायटी की ओर से दिल्ली की मुख्यमंत्री के हाथों लिजेंड ऑफ इंडिया लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड २००४ दिया गया. मुंबई के पृथ्वी थियेटर में चल रहे फे स्टीवल २००४ में हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित सात नाटकों का मंचन हो रहा है, जो पूरे फेस्टीवल में किसी निर्देशक द्वारा निर्देशित ये सर्वाधिक प्रस्तुतियां हैं.
मुंबई का पृथ्वी थियेटर नाटकों से जुड़े लोगों के लिए किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है. रंगकर्म से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति की चाहत होती है कि एक बार उसे पृथ्वी थियेटर के स्टेज पर परफारमेंस करने को मिले. पृथ्वी थियेटर में एक नवंबर से २८ नवंबर २००४ तक चलने वाला फेस्टीवल २००४ छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है. छत्तीसगढ़ को पूरी दुनिया में पहुंचाने वाले हबीब तनवीर का नया थियेटर की प्रस्तुति इस फेस्टीवल का मुख्य आकर्षण है. आगरा बाजार, चरणदासचोर, कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना, गांव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद, पोंगा पंडित, जहरीली हवा, सड़क नाटक के जरिए हबीब तनवीर और उनके छत्तीसगढ़ी के लिए गौरव की अनुभूति हो सकती है. छत्तीसगढ़ के जनजीवन से जुड़ी लोक कथाएं, गीत संगीत, हंसी-मजाक सब कुछ जीवंत हो उठता है, हबीब तनवीर के नाटकों में. संयोगवश मुझे इस फेस्टीवल में हबीब तनवीर के दो नाटक आगरा बाजार और चरणदासचोर देखने का अवसर मिला. ये दोनों नाटक हबीब साहब के रंगकर्म के सफर में संगे मील हैं. नाटकों की टिकिट जो सौ रूपए थी, की पहले से एडवांस बुकिंग हो चुकी थी, मुझे तो हबीब साहब की वजह से पृथ्वी थियेटर में जाने को मिला. मेरे सामने कितने ही नाट्यप्रेमी निराश लौटे. नाटक के बाद कला की दुनिया के बड़े-बड़े नामों को जो नाट्य प्रस्तुति के दौरान मौजूद थे हबीब साहब और छत्तीसगढ़ के कलाकारों से आत्मीय रिश्ता बनाते देखकर बहुत अच्छा लगा. हमारे राजनांदगांव के देवार जाति से आने वाली कलाकार पूनम जब अब दीपक तिवारी की पत्नी है, के साथ संजना कपूर के फोटो खिंचवाते देखना अपने आपमें सुखद अनुभूति है. पूनम तिवारी ने अपनी खनकदार आवाज डांस और अदाकारी से नाट्य प्रस्तुति में चार चांद लगाया. हबीब तनवीर से कुछ समय के लिए बिछड़े इस दंपति ने अब अपने बाल-बच्चों के साथ नए सिरे से अपने को नया थियेटर से जोड़ा है. यह नया थियेटर के लिए उपलब्धि है. हबीब तनवीर के नाटकों में उनकी बेटी नगिन की उपस्थिति भी नाटकों की प्रभावी प्रस्तुति में सहायक रही है. फिल्मी और रंगकर्म की दुनिया से जुड़ी नामचीन हस्तियां हबीब साहब से उनकी टीम के कलाकारों से रूबरू होकर उन्हें बधाई दे रही थीं. उनसे छत्तीसगढ़ के बारे में, यहां की कला संस्कृति के बारे में बातें कर रही थीं और इन सबके गवाह के रूप में मुंबई में रहने वाली छत्तीसगढ़ की एक हस्ती वहां मौजूद थी, जिनका नाम है सत्यदेव दुबे.
स्क्रिप्ट राइटर, लेखक जावेद सिद्दीकी कहने लगे कि मुंबई में हमारे जैसे लोगों के लिए यह संभव नहीं है कि हम इतनी बड़ी टीम लेकर नाट्य प्रस्तुति करें. हबीब साहब ८५ की उम्र में भी पचास-साठ कलाकारों का दल लेकर इतने सारे नाटक कैसे कर लेते हैं ? जो लोग हबीब तनवीर और उनकी पत्नी मोनिका तनवीर को जानते हैं वे इस हुनर से वाकिफ हैं.
रायपुर के लॉरी (सप्रे) म्युनिसिपल स्कूल में सन् १९३० में ११ वर्ष की आयु से अपनी नाट्य यात्रा प्रारंभ करने वाले हबीब तनवीर ने सबसे पहले शेक्सपियर के किंग्जान में पिं्रस ऑर्थर का अभिनय किया. उसके बाद अपने फारसी शिक्षक मोहम्मद ईशाक, जो बाद में उनके बहनोई हुए, द्वारा लिखे नाटक में एक जूता पॉलिश करने वाले का रोल किया. हबीब तनवीर को दोनों नाट्कों के लिए ठाकुर प्यारेलाल एवार्ड मिला. इसके बाद नागपुर के मॉरिस कॉलेज में स्नातक तथा अलीगढ़ विश्वविद्यालय में एम.ए. करने पहुंचे. हबीब तनवीर एम.ए. फर्स्टईयर करके मुंबई पहंुच गए. हबीब अहमद खान से शायरी के लिए रखा तखल्लुस तनवीर जोड़कर हबीब तनवीर कहलाने वाले इस शख्स ने अपनी जमीन को अपनी जड़ों को गहराई से पकड़कर रखा. इप्टा, प्रगतिशील लेखक संघ की यात्रा करते हुए ब्रिटेन में नाटक का प्रशिक्षण लेने के उपरांत १९६४ में मोनिकाजी केे साथ दिल्ली के जनपथ में एक गैरेज से ९ लोगों के साथ नया थियेटर की शुरूआत हुई. लोक जीवन से उठाई गई चीजों को आधुनिक दृष्टि, आधुनिक संवेदनाआें के साथ इतिहास और राजनीति की गहरी समझ रखते हुए नाट्य प्रस्तुति नया थियेटर की विशेषता बनकर उभरी.
देश के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हालातों पर गहरी नजर रखकर उसे अपने नाटकों के जरिये से उठाने वाले हबीब तनवीर को १९७० में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से लेकर आज तक अनेकों पुरस्कारों के साथ पद्मश्री, पद्मभूषण, राज्य सभा की सदस्यता तक से सम्मानित किया जा चुका है. १९७३ में छत्तीसगढ़ के कलाकारोें की मदद से नया थियेटर व्यावसायिक थियेटर के रूप में स्थापित होकर आज तक सक्रिय है.
छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों की मातृभाषा और मुक्त अंग संचालन को समझकर यहां की लोककथा, मुहावरे, नाचा, गम्मत, पंथी, नृत्य, पंडवानी को अपने नाटकों में समाहित कर हबीब तनवीर ने नाटकों का वह संसार रचा है जो अपने आप में अद्वितीय है, जिन्होंने हबीब तनवीर का आगरा बाजार देखा है उनकी जुबान पर नजीर अकबरावादी की शायरी गूंजती रहती है. नजीर की यह शायरी पृथ्वी थियेटर में बैठे प्रत्येक कलाप्रेमी की जुबान पर थी जिसकी गंूज आने वाले दिनों में भी सुनाई पड़ती रही.
``दुनिया में जो बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफलिसो गधा है सो है वह भी आदमी
जरदार, बेन्नवा है सो है वह भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है, सो है वह भी आदमी
नेमत जो खा रहा है, सो है वह भी आदमी
मस्जिद भी आदमी ने बनाई है यां मियां
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाखां
पढ़ते हैं आदमी ही कुरान और नमाज यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियां
जो उनको ताड़ता है, सो है वह भी आदमी''
एक यायावर की तरह पूरे देश और दुनिया में घूम-घूमकर छत्तीसगढ़ की लोककला और यहां की माटी से जुड़े कलाकारों को ले जाने वाले हबीब तनवीर के नाटकों का मंचन पृथ्वी थियेटर फेस्टीवल २००४ के माध्यम से दिल्ली, बैंगलोर में भी होगा. गोंविदराम निर्मलकर, अमर दास मानिकपुरी, उदयराम श्रीवास, चिंताराम यादव, भूलवाराम यादव, रामचंद्र सिंह, दीपक तिवारी, पूनम तिवारी जैसे अपने साथी कलाकारों के साथ पूरे देश में प्रामाणिक और मौलिक नाटकों के जरिए अपनी अलग पहचान बनाने वाले हबीब तनवीर ने थियेटर को ग्रामीण तथा नए भारतीय कलाकारों के माध्यम से अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखते हुए लोक थियेटर के मूल्यों को बचाए रखा है. छत्तीसगढ़ का परचम अपनी समृद्ध लोककला, लोकगीत, लोकसंगीत, लोकनृत्य और रंगमंच के जरिए पूरी दुनिया में फहराता रहेगा और इसकी अगवाई का श्रेय जाएगा हबीब तनवीर जैसे लोगों के नाम.

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